प्रस्तावना – Angulimal & Buddha Story in Hindi
यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की, जो कभी भय और हिंसा का प्रतीक था, लेकिन एक दिन भगवान बुद्ध से मिला और दया, अहिंसा और आत्मशुद्धि का मार्ग अपना लिया। यह परिवर्तन की वह कहानी है जो बताती है – कोई भी कितना भी गिरा हुआ क्यों न हो, सही मार्गदर्शन और आत्मचिंतन से उसकी आत्मा जाग सकती है।
अंगुलिमाल – भय का नाम
प्राचीन भारत में एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय तक्शशिला में एक मेधावी छात्र पढ़ता था – उसका नाम था अहीम्सक। वह अत्यंत बुद्धिमान, विनम्र और गुरुजनों का प्रिय था। परंतु, उसकी बुद्धिमत्ता से कुछ अन्य विद्यार्थी जलते थे और उन्होंने उसके विरुद्ध गुरु के कान भर दिए कि अहीम्सक चरित्रहीन है।
गुरु को भ्रम हुआ और उन्होंने एक दिन क्रोधवश अहीम्सक से कहा:
“यदि तुम मुझे प्रसन्न करना चाहते हो, तो जंगल में जाओ और 1000 मनुष्यों की उंगलियाँ काटकर मेरी भेंट करो।”
यह आदेश गुरु-दक्षिणा के रूप में दिया गया था, और अहीम्सक भ्रमित होकर जंगल चला गया।
राक्षस बनता इंसान
जंगल में अहीम्सक ने धीरे-धीरे निर्दोष यात्रियों की हत्या शुरू की और उनकी एक-एक उंगलियाँ काटकर उन्हें एक माला में पिरो लिया – इसीलिए उसका नाम हो गया अंगुलिमाल।

लोग उससे भयभीत हो गए। गांव के लोग जंगल के रास्तों से गुजरने से डरने लगे। राजा के सिपाही भी उसकी ताकत के आगे असहाय थे।
भगवान बुद्ध का आगमन
एक दिन भगवान बुद्ध अंगुलिमाल के क्षेत्र से गुजर रहे थे। गांववालों ने उन्हें रोका और कहा:
“उधर मत जाइए, वहां अंगुलिमाल है – वह किसी को नहीं छोड़ता।”
बुद्ध मुस्कुराए और बोले:
“जो अपने भीतर शांति लेकर चलता है, उसे कोई हानि नहीं पहुँचा सकता।”
सत्य से सामना
जैसे ही अंगुलिमाल ने भगवान बुद्ध को देखा, वह उन्हें मारने के लिए दौड़ा। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, बुद्ध धीरे-धीरे चल रहे थे, फिर भी अंगुलिमाल उन्हें पकड़ नहीं पाया। वह चौंक गया और चिल्लाया:
“रुको!”
बुद्ध शांत स्वर में बोले:
“मैं रुक गया हूं, अब तुम रुक जाओ।”
अंगुलिमाल ने पूछा:
“तुम कैसे रुके हो? और मैं कैसे नहीं रुका?”
बुद्ध ने उत्तर दिया:
“मैंने हिंसा और पापों को त्याग दिया है। मैं भीतर से रुक गया हूं। लेकिन तुम अब भी क्रोध, पाप और हिंसा के प्रवाह में बह रहे हो – तुम अब तक नहीं रुके।”
यह वाक्य अंगुलिमाल के हृदय को चीर गया। उसकी आत्मा कांप उठी। उसे अपने कर्मों का एहसास हुआ।
आत्मबोध और परिवर्तन
अंगुलिमाल फूट-फूट कर रो पड़ा। उसने बुद्ध के चरणों में गिर कर कहा:
“मैंने बहुत पाप किए हैं। क्या मेरे लिए भी मुक्ति संभव है?”
बुद्ध बोले:
“तुम्हारा आज का निर्णय, तुम्हारा कल बदल सकता है।”
बुद्ध ने उसे दीक्षा दी और वह भिक्षु अंगुलिमाल बन गया।

समाज का विरोध और क्षमा
जब अंगुलिमाल गांव में भिक्षा मांगने गया, लोगों ने उसे पहचाना और पत्थर मारे। परंतु वह शांत रहा। लोगों को धीरे-धीरे उसके परिवर्तन पर विश्वास हुआ।
एक दिन, एक गर्भवती स्त्री प्रसव पीड़ा से कराह रही थी। अंगुलिमाल ने बुद्ध से कहा:
“मैं उसकी मदद करना चाहता हूं।”
बुद्ध बोले:
“जाओ और कहो – यदि मैंने कभी किसी को जानबूझकर हानि नहीं पहुंचाई, तो यह स्त्री सुरक्षित प्रसव करे।”
अंगुलिमाल चौंका:
“लेकिन मैंने तो हिंसा की है।”
बुद्ध मुस्कराए और बोले:
“लेकिन अब से नहीं। तुम्हारा आज पवित्र है।”
अंगुलिमाल ने वह वचन स्त्री से कहा – और स्त्री ने सुरक्षित संतान को जन्म दिया। यह उसके नए जीवन की शुरुआत थी।
अंत में निर्वाण
अंगुलिमाल ने जीवनभर अहिंसा, क्षमा और सेवा का मार्ग अपनाया। अंत में वह बुद्ध के समीप निर्वाण को प्राप्त हुआ।
Angulimal Transformation – शिक्षा (Moral of the Story)
- कोई भी व्यक्ति कितना भी गहरा अपराधी क्यों न हो, प्रायश्चित और मार्गदर्शन से बदल सकता है।
- अहिंसा और करुणा ही सच्चा धर्म है।
- सत्य का सामना करने की शक्ति, व्यक्ति के जीवन को बदल देती है।
- समाज बदलने में समय लगाता है, लेकिन असली परिवर्तन भीतर से होता है।