प्रस्तावना (Introduction)
हम सभी अपने जीवन में तरक्की, मुक्ति या किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मेहनत करते हैं। लेकिन कभी-कभी हम अधीर हो जाते हैं और परिणाम जल्दी चाहते हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और कृतज्ञता में समय की सीमा नहीं होती।
दो साधु, एक उद्देश्य (Two Sages, One Goal)
बहुत समय पहले की बात है। एक घना, शांत और रहस्यमय जंगल था जहाँ केवल पक्षियों की मधुर ध्वनि और हवा की सरसराहट सुनाई देती थी। उसी जंगल के एक कोने में दो साधु वर्षों से कठोर तपस्या कर रहे थे।
वे किसी सामान्य तपस्वी नहीं थे—उनकी आँखों में भक्ति की आग थी और हृदय में केवल एक ही लक्ष्य—भगवान के साक्षात दर्शन पाना और मोक्ष को प्राप्त करना।
उन दोनों ने सांसारिक जीवन पूरी तरह त्याग दिया था। न गर्मी की परवाह, न सर्दी का डर। उन्होंने शरीर को तपस्या की अग्नि में झोंक दिया। दिन-रात मंत्रोच्चारण करते, ध्यान में लीन रहते, और कभी-कभी केवल वायु पीकर जीवन यापन करते।
उनकी आँखों में न स्वार्थ था, न प्रतिस्पर्धा—बस एक शांत दृढ़ता कि प्रभु एक दिन दर्शन अवश्य देंगे।
वर्षों इसी साधना में बीत गए। शरीर कमजोर होता गया, पर आत्मा और भी निखरती गई।
उसी समय, देवताओं के दूत, देवर्षि नारद, अपने वीणा के मधुर स्वर के साथ आकाश मार्ग से गुजर रहे थे। जब उन्होंने इन दो साधुओं की अखंड भक्ति देखी, वे रुक गए।
नारद मुनि से सवाल (Questioning Narada)
दोनों साधु प्रसन्न हुए। उनमें से एक ने झटपट पूछा:
“हे नारद मुनि! कृपया बताइये, मुझे भगवान के दर्शन कब होंगे?”
नारद मुस्कराए और बोले, “तुम्हें तीन और जन्म लेने होंगे।”
साधु यह सुनकर क्रोधित हो गया: “क्या? इतने वर्षों की तपस्या के बाद भी तीन जन्म? यह तो अन्याय है!” और वह स्थान छोड़कर चला गया।
दूसरे साधु की विनम्रता (The Humble Seeker)
अब नारद मुनि दूसरे साधु के पास गए। उसने भी वही सवाल किया।
नारद बोले, “जितने पेड़ इस जंगल में हैं, उतने जन्म लेने होंगे।”
साधु ने आँखें बंद कीं, और मुस्कुराते हुए कहा:
“हे नारद जी! यह मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है कि एक दिन भगवान के दर्शन अवश्य होंगे। यही जानकर मेरा हृदय कृतज्ञता से भर गया।”
चमत्कार – वही क्षण ईश्वर दर्शन का बन गया (The Miracle of Gratitude)

जैसे ही उसने यह शब्द बोले, आकाश से दिव्य प्रकाश उतरा। भगवान उसी क्षण प्रकट हुए और बोले:
“तुम्हारी कृतज्ञता और धैर्य ने मेरी परीक्षा पास कर ली। तुम्हें अब और जन्म नहीं लेने पड़ेंगे।”
Narada and Devotees Gratitude Story – कहानी की सीख (Moral of the Story)
- कृतज्ञता वह गुण है जो तप और भक्ति से भी ऊपर माना गया है।
- सच्चे विश्वास और धैर्य से किया गया प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता।
- तुलना और अधीरता मन की अशांति बढ़ाते हैं, जबकि स्वीकृति और संतोष परम सुख देते हैं।
आज की दुनिया के लिए संदेश (Modern Meaning of the Story)
जब हम अपने जीवन में लक्ष्य निर्धारित करते हैं – चाहे वह करियर हो, आध्यात्मिक खोज, या कोई निजी सपना – हमें धैर्य और आभार के साथ आगे बढ़ना चाहिए। परिणाम आने में समय लग सकता है, लेकिन अगर हम रास्ते में हर अनुभव के लिए आभारी हैं, तो लक्ष्य स्वयं चलकर हमारे पास आता है।