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ब्राह्मण और तीन ठग – एक बोधपूर्ण कथा

Panchtantra ki kahani in hindi – Brahman and Thugs

बहुत समय पहले की बात है। काशी नामक नगरी में एक सत्यव्रत नाम का ब्राह्मण रहता था। वह पूजा-पाठ, वेदों का अध्ययन, और सेवा-कार्य में हमेशा व्यस्त रहता। लोग उसकी सच्चाई और सरलता से प्रभावित थे।

गाँव वालों का उपहार

एक दिन गांव के एक सम्मानित गृहस्थ ने सत्यव्रत को सम्मानस्वरूप एक सुंदर, सफेद बकरी उपहार में दी और कहा:

“ब्राह्मण देव, यह बकरी आप अपने कुलदेवता की पूजा में उपयोग करें या किसी ज़रूरतमंद को दान करें।”

सत्यव्रत बहुत प्रसन्न हुआ। उसने बकरी की रस्सी थामी और पूजा के लिए नदी किनारे स्थित आश्रम की ओर चल पड़ा।

ठगों की चाल और लालच

उसी मार्ग में तीन चालाक ठगों की नज़र उस बकरी पर पड़ी। उन्हें तुरंत बकरी हड़पने की योजना सूझी। उन्होंने सोचा, “ये ब्राह्मण तो बड़ा भोला है, इसे छलना आसान होगा।”

उन्होंने योजना बनाई कि वे बारी-बारी से ब्राह्मण को भ्रमित करेंगे।

पहला ठग – भ्रम की शुरुआत

पहला ठग रास्ते में मिला और बड़ी हैरानी से बोला:

“अरे ब्राह्मण देव! क्या आपने धर्म त्याग दिया? आप तो बहुत ज्ञानी हैं, फिर भी मरे हुए कुत्ते को लेकर चल रहे हैं?”

सत्यव्रत चौंका – “क्या? ये तो बकरी है!”

“माफ कीजिए, मेरी आँखें धोखा खा रही होंगी,” कहकर ठग चला गया।

दूसरा ठग – संदेह का बीज

थोड़ी दूर जाकर दूसरा ठग मिला। उसने कहा:

“ब्राह्मण जी! क्या आपको यह शोभा देता है कि आप सियार को कंधे पर उठाकर ले जा रहे हैं?

अब ब्राह्मण सोच में पड़ गया। “दूसरा भी वही कह रहा है? क्या सच में मेरी आँखें धोखा खा रही हैं?”

तीसरा ठग – डर का असर

फिर तीसरा ठग सामने आया और घबराहट में बोला:

“हे नाथ! यह तो भूत-प्रेत जैसी कोई वस्तु लग रही है! जल्दी इसे फेंक दीजिए नहीं तो कोई अनर्थ हो जाएगा!”

अब सत्यव्रत पूरी तरह घबरा गया। वह सोचने लगा, “तीनों अलग-अलग लोग एक जैसी बात कह रहे हैं, जरूर कुछ गड़बड़ है।” डर के मारे उसने बकरी वहीं छोड़ दी और तेज़ी से भाग गया।

ठगों की चाल सफल

जैसे ही ब्राह्मण गया, तीनों ठग हँसते हुए आए, बकरी को उठाया और आराम से अपने घर की ओर चल दिए।

Panchtantra ki kahani – Moral of the Story – इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

बार-बार बोले गए झूठ को भी लोग सच मानने लगते हैं। इसलिए अंधविश्वास या भीड़ के भ्रम में न आएं, अपने विवेक से काम लें।


नैतिकता (Moral of the Story):

  • अपने विवेक को दूसरों की बातों से दबने न दें।
  • हर बार की गई बात सच नहीं होती – सोच-समझकर निर्णय लें।
  • भोलेपन और श्रद्धा में अंतर समझना आवश्यक है।

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