हँसी भी, समझ भी।
मुल्ला नसरुद्दीन की कहानियाँ हमें हँसाती हैं, लेकिन उनके अंदर छुपी सीखें जीवन की सबसे गहरी परतों को छू जाती हैं।
आज की यह कहानी है — “चाबी कहाँ गिर गई?”
एक ऐसी कहानी जो बाहर की रौशनी और भीतर के अंधेरे का फर्क सिखा देती है।
कहानी: चाबी कहाँ गिर गई?
एक बार की बात है…
शाम का समय था।
सूरज ढल चुका था और अंधेरा धीरे-धीरे गहराने लगा था।
गाँव की एक पतली गली में, पीले दीये की मद्धम रौशनी के नीचे एक आदमी कुछ खोजने में लगा था।
वह आदमी कोई और नहीं, बल्कि हमारे चहेते मुल्ला नसरुद्दीन थे।
वे घुटनों के बल झुके हुए थे, कुछ तलाश कर रहे थे।
चेहरे पर चिंता थी, लेकिन अंदाज़ हमेशा की तरह निराला।

उसी समय गाँव का एक नौजवान वहाँ से गुज़रा।
उसने देखा कि मुल्ला बार-बार ज़मीन पर झुककर कुछ देख रहे हैं, फिर उठकर दीये के इर्द-गिर्द घूमने लगते हैं।
नौजवान रुका और बोला,
“मुल्ला, क्या खो गया? कुछ मदद करूँ?”
मुल्ला बोले,
“हाँ बेटा, मेरी चाबी गिर गई है। बड़ी ज़रूरी चाबी है।”
नौजवान तुरंत उनके साथ ज़मीन पर ढूँढने लगा।
दोनों कुछ देर तक चुपचाप रेंगते रहे — झाड़ू की तरह ज़मीन छानते हुए।
थोड़ी देर बाद वह नौजवान थोड़ा हैरान हो गया।
उसने पूछा,
“मुल्ला, ये बताइए — चाबी यहीं गिरी थी क्या?”
मुल्ला ने सिर हिलाया,
“नहीं बेटा, चाबी तो मेरे घर के अंदर गिरी है।”
नौजवान चौंक गया —
“तो फिर हम यहाँ क्यों ढूँढ रहे हैं?”
मुल्ला मुस्कराए और बोले,
“क्योंकि मेरे घर में अंधेरा है, और यहाँ दीया जल रहा है।”
कुछ क्षण की हँसी, उम्रभर की सीख
नौजवान पहले तो मुस्कराया।
फिर थोड़ी देर तक सोचता रह गया…
क्या हम सभी यही नहीं करते?
- असली समस्याएँ हमारे भीतर होती हैं, लेकिन हम उन्हें बाहर हल करने की कोशिश करते हैं।
- जहाँ अंधेरा है, वहाँ देखने की हिम्मत नहीं होती — इसलिए हम रोशनी वाली जगहों में व्यस्त हो जाते हैं।
- हमारी सच्चाई, हमारी चाबी — वही जो जीवन को खोलती है — वो अक्सर भीतर के अंधेरे में ही छिपी होती है।
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
- जहाँ समस्या है, समाधान भी वहीं होता है।
अगर चाबी भीतर गिरी है, तो ढूँढना भी वहीं पड़ेगा — चाहे अंधेरा हो, चाहे मुश्किल। - आसान रास्ता हमेशा सही नहीं होता।
हम अक्सर बाहर की सुविधाजनक रौशनी में हल ढूँढते हैं — लेकिन असली जवाब वहाँ नहीं होते। - भीतर झाँकने का साहस ही असली सूफ़ी मार्ग है।
आत्म-चिंतन, स्व-मूल्यांकन, और ईमानदार आत्म-संवाद ही चाबी खोजने का सही तरीका है।