बहुत समय पहले की बात है। एक धनी आदमी था, जो अपने जीवन में कभी संतुष्ट नहीं हुआ।
उसके पास सब कुछ था — धन, भोजन, वस्त्र, सेवक…
लेकिन फिर भी वह और चाहता था।
और ज़्यादा। हर चीज़ में। हर समय।
मरने के बाद, उसके कर्मों ने उसे ‘भूखे भूत’ (Preta) के रूप में जन्म दिया।
👻 भूखे भूत का रूप:
उसका पेट विशाल था — इतना बड़ा कि उसमें कुछ भी समा नहीं पाता।
गला इतना पतला कि एक धागा भी मुश्किल से उतरता।
वो हर समय भूखा, प्यासा और बेचैन रहता।
जो भी खाता, वह जल जाता या राख में बदल जाता।
वह गांव-गांव घूमता, मंदिरों के पास छिपता, और लोगों के प्रसाद की खुशबू सूंघकर तड़पता।
लेकिन कभी संतोष नहीं मिलता।
🧘♂️ एक दिन एक बौद्ध भिक्षु ने उसे देखा और ध्यानपूर्वक प्रार्थना की:
“हे आत्मा, तू भूखा नहीं है — तू तृष्णा है।”
“सच्चा भोजन संतोष है।”
वह आत्मा रो पड़ी।
भिक्षु ने उसे ध्यान की राह दिखाई, और वह धीरे-धीरे अगले जन्मों में सुधार की ओर बढ़ने लगी।
🔥 सीख:
“अत्यधिक इच्छा स्वयं को ही भस्म कर देती है।”
भूख सिर्फ पेट की नहीं होती — मन की होती है।
और वह भूख, जब नियंत्रण से बाहर हो, तो इंसान को ‘भूत’ बना देती है — ज़िंदा रहते भी।