बहुत समय पहले जापान में एक ज़ेन साध्वी थीं — नाम था चियोन।
वह बुद्धत्व की खोज में हर दिन ध्यान करती, मठ में काम करती, और मौन रहकर अभ्यास करती।
फिर भी उसे प्रकाश का अनुभव नहीं हो रहा था।
एक दिन उसने अपने गुरु से पूछा,
“मैं वर्षों से प्रयास कर रही हूँ, लेकिन कुछ भी नहीं हो रहा। क्यों?”
गुरु ने मुस्कुराकर कहा,
“छोड़ दो… सब कुछ छोड़ दो।”
चियोन उलझ गई।
लेकिन वह शांति से वापस चली गई।
घटना की रात:
रात का समय था।
वह नदी के किनारे से मठ लौट रही थी,
उसके हाथ में था एक मिट्टी का घड़ा — जिसमें वह पानी भरकर ला रही थी।
चाँद की परछाई उस पानी में झलक रही थी।
रास्ते में अचानक वह घड़ा टूट गया।
पानी धरती में समा गया,
चाँद की छवि गायब हो गई।
और उसी क्षण —
चियोन को बोध हो गया।

उसने लिखा:
“घड़ा टूट गया –
न पानी बचा, न चाँद।
केवल मैं हूँ – शांत, पूर्ण, शून्य।”
सीख:
जब तक हम पकड़े रहते हैं — घड़े को, पानी को, चाँद की छवि को —
तब तक हम स्वयं को खो देते हैं।
लेकिन जब हम सब छोड़ देते हैं,
तब हम खुद को पा लेते हैं।”